वो रुत गयी, वो जामने गए,वो अपने, वो पराये हो गए,वो हमसफ़र, वो बेगाने हो गए,वो काबू से, बेकाबू हो गए।। वो रिश्तों के धागे कच्चे हो गए,वो अपनों के बंधन अफ़साने हो गए।। वो रात गयी, वो दिन गए,वो साथी, वो बेसाथी हो गए,वो लोग, वो अनजाने हो गए,वो अनुज से, अग्रज हो गए।।Continue reading “अफ़साने”
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अगर-मगर
हाँ हैं बहुत झुट्ठे मगर,आप भी दूध के धुले नही,अगर होते दूध के धुले तो,आप गवाही देते नहीं फिरते।। हाँ हैं बहुत कमी मगर,आप भी चाँद की चांदनी नहीं,अगर होते आप परिपूर्ण तो,आप पर चाँद की तरह दाग नहीं होते।। हाँ हैं बहुत बुरे मगर,आप भी कुछ अच्छे नहीं,अगर होते आप अच्छे तो,सरेआम हमें बुराContinue reading “अगर-मगर”
परिवार बनाम शत्रु
रक्त पिपासु थे शत्रु मगर,अपनो जितने नहीं,उन्होंने तो बदन चीरा मगर,अपनों ने तो कलेजा चीर निकाला।। कहते हैं लोग जालिम होते हैं मगर,अपने भी कहा काम होते हैं,लोग तो धन दौलत खाते हैं मगरअपने तो घर बार खा जाते हैं।। शत्रु का धर्म हैं छल करना मगर,अपनो का धर्म हैं अपनाना,शत्रु भी पिघल जाते हैंContinue reading “परिवार बनाम शत्रु”
