बेटी को न्याय

बेटी को न्याय देखा रात में एक सपना था, उठी मानकर अपना था।फटकार सुनी तड़के उठकर, कैसी विपदा को आना था।। पापा को माँ से कहते सुना, छोरी अपनी अठारह में खड़ी।बात सगाई की सुनते ही, कॉलेज की ओर मैं दौड़ खड़ी।कॉलेज का फाटक निकट सामने, मानो बहुत हूँ दूर खड़ी।सहेलियों संग अठखेली करती, देखोContinue reading “बेटी को न्याय”

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