रक्त पिपासु थे शत्रु मगर,अपनो जितने नहीं,उन्होंने तो बदन चीरा मगर,अपनों ने तो कलेजा चीर निकाला।। कहते हैं लोग जालिम होते हैं मगर,अपने भी कहा काम होते हैं,लोग तो धन दौलत खाते हैं मगरअपने तो घर बार खा जाते हैं।। शत्रु का धर्म हैं छल करना मगर,अपनो का धर्म हैं अपनाना,शत्रु भी पिघल जाते हैंContinue reading “परिवार बनाम शत्रु”
