
रक्त पिपासु थे शत्रु मगर,
अपनो जितने नहीं,
उन्होंने तो बदन चीरा मगर,
अपनों ने तो कलेजा चीर निकाला।।
कहते हैं लोग जालिम होते हैं मगर,
अपने भी कहा काम होते हैं,
लोग तो धन दौलत खाते हैं मगर
अपने तो घर बार खा जाते हैं।।
शत्रु का धर्म हैं छल करना मगर,
अपनो का धर्म हैं अपनाना,
शत्रु भी पिघल जाते हैं मगर,
अपने तो सारे आम निगल जाते हैं।।
शत्रु तो साथ भी मिल जाते हैं मगर,
अपने कहा मिल पाते हैं,
शत्रु पर आंख बंद भरोसा करना मगर,
अपनो पर तो खुली आंखों से भी मत करना।।
शत्रु गाला काटने को आतुर हो मगर,
अपने तो गले लग कर काट जाते हैं,
शत्रु का गला काटना भी नाजायज़ लगता हैं मगर,
अपने तो जायज होकर भी नाजायज़ हो जाते है।।
आये गुस्सा यकीनन मगर,
हम तो अपनी बात बताएंगे,
हम अपनो को एक बार नही मगर,
बार बार गलत बतलाएंगे।।
