बेटी को न्याय

Affected for rape

बेटी को न्याय

देखा रात में एक सपना था, उठी मानकर अपना था।
फटकार सुनी तड़के उठकर, कैसी विपदा को आना था।।

पापा को माँ से कहते सुना, छोरी अपनी अठारह में खड़ी।
बात सगाई की सुनते ही, कॉलेज की ओर मैं दौड़ खड़ी।
कॉलेज का फाटक निकट सामने, मानो बहुत हूँ दूर खड़ी।
सहेलियों संग अठखेली करती, देखो उनसे हूँ दूर खड़ी।।

लाज-शर्म से बात बताई, तुरंत सहेलियां हंस पड़ी।
उम्र तुम्हारी कच्ची हैं, झट सहेली बोल पड़ी।
कॉलेज का दिन लंबा गुजरा, तभी चोट घंटे पर पड़ी।
छुट्टी होती कॉलेज की, कुल्फी ठेले की ओर दौड़ पड़ी।।

निपट अकेले राह पर, देख उनको घबरा उठी।
थोड़ा सा मन घबराया, जी मचलाया, तुरंत ही संभल उठी।
देख दरिंदों की मनसा को, तुरंत ही घबरा उठी।
छूते ही नन्ही सी कली को, भैया- भैया चिल्ला उठी।।

कॉलेज से आ रही बेटी को, उन दरिंदों ने उठाया था।
घरवाले जिंदा लाश हो गए, जब थाने का फ़ोन उठाया था।
घर मे मातम सा छाया, जब घर मे पसरा सन्नाटा था।
ये कैसी हैं विपदा आयी, सोच कर पिता ने सर पकड़ा था।।

बेटी बाप की गरिमा थी, ये कैसी लाचारी थी।
न्याय मांगने के खातिर, बाप ने रपट लिखायी थी।
खामोश हो गया पूरा सदन, जब कोर्ट से रिहाई पायी थी।
खमोशी की कि चुप्पी टूटी, जब माँ ने सिसक लागई थी।।

न्याय देखकर न्यायालय का, न्यायाधीश भी चकित खड़ा।
अंधे-कानून की परिभाषा में, न्याय जंजीरो में खड़ा।
ऐसे कानून की भाषा मे, लाचार बाप एक कोने में खड़ा।
लाचार पिता अपने आप को, महसूस करे फांसी पर खड़ा।।

पुनः एक बार प्रयत्न पर, सुबूत जुटाए जाने थे।
न्यायालय के न्याय को, सही न्याय दिलाने वाले थे।
पुनः एक बार पेशी पर, दरिंदे बुलाये जाने थे।
POXO एक्ट के तहत, फांसी पर लटकाये जाने थे।।

देखा रात में एक सपना था , उठी मानकर अपना था।

Published by vspawar285

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