
रुख़शत कर गए हमारी जिंदगी से,
मगर इक दिन तो जाना था,
चले जाना था जल्दी मगर,
इतना जल्दी नहीं कि चंद घंटों में।
सब्र नहीं था आपको मगर,
हमें तो बतलाना था,
लफ्ज़ बोलकर तो नही मगर,
इशारों में तो समझना था।
अनजान इशारे किये होंगे मगर,
हम तो अनजाने में अनजाने थे,
हम दुआ कर सकते हैं मगर,
हर जगह आपके अफ़साने थे।
हम आपसे जुड़े हुए थे मगर,
हम आखरी सांस ना समझ सके,
रुख़शत होने का समय हुआ मगर,
हमको आखरी अलविदा न कह सके।
देर जल्द, रात सवेर जागे मगर,
आपकी धड़कन को न पढ़ सके,
खुदा के परवाने कहा टलते हैं मगर,
पर उस परवाने को आप पढ़ चुके।
रक्त का कतरा थे हम आपके मगर,
आप हमारी रूह तक बसें हैं,
आज कतरे का रक्त मिट्टी हैं मगर,
उस अमर मिट्टी को नमन करते हैं।।
