
राजनीति कोई चर्चा का विषय नही हैं, बल्कि उसे समझने का विषय हैं। पहला प्रश्न तो ये हैं, की राजनीति कहते किसे है और क्यों कहते हैं? क्या हम छोटे रूप से ये कह सकते हैं कि, वह एक स्थान जहाँ पर कोई शासन या प्रशासन संबंधी क्रियाएं निष्पादित या संपादित होती हो। परन्तु ये भी कहना गलत नही होगा कि जहाँ कोई एक राजा द्वारा सभी को आदेश देकर, राजा के द्वारा सभी क्रियाएं देखी जाती हो और राजा का आदेश सर्वमान्य होता होगा। इन सभी का समिश्रण रूप ही राजनीति हैं। दूसरा प्रश्न ये हैं कि राजनीति का महत्व क्यों हैं? इसका उत्तर में एक प्रश्न से ही देना चाहता हूँ, क्या राजनीती के बिना देश या विश्व का किर्यान्वन संभव नही हैं? राजनीती का महत्व प्रत्यक्ष रूप से इतना समझ मे नही आता जितना हम इसको अप्रत्यक्ष रूप से ज्यादा समझते हैं। यदि हम राजनीति को प्रत्यक्ष रुप में देखते हैं, तो इसको मात्र एक विषय से ज्यादा नही मानते हैं, इसको हम सिर्फ अप्रत्यक्ष रूप में ज्यादा समझ सकते हैं, प्रत्यक्ष रूप में राजनीति सभी विषयों में शामिल हैं जैसे इतिहास, भूगोल, सामाजिक, समाजशास्त्र आदि विषयों में इसका अप्रत्यक्ष रूप से ज्यादा महत्व हैं, जैसा कि हम जानते हैं की इतिहास में अनगिनत राजा हुए पर हम जब राजा के परिचय के बारे में अध्यन करते हैं तब इतिहास में अलग से उस रहे के बारे में राजनीतिक महत्व अप्रत्यक्ष रूप से पढ़ते हैं परंतु उसका प्रत्यक्ष रूप से उस विषय पर बहुत कम प्रभाव पड़ता हैं। जैसा की हम जानते हैं, भूगोल में किसी किसी राजधानी की बात करते हैं तो अप्रत्यक्ष रूप से राजनीति को भी समाहित करते हैं।
इसलिए ही तो कहा गया था कि राजनीति चर्चा का विषय नही समझने का विषय हैं, राजनीति में कहते हैं की इसमें इसमे जाति, धर्म, रंग, रूप, छुआछूत का कोई महत्व नही होता हैं, ये बात बिल्कुल सही हैं परंतु ये सब प्रत्यक्ष रूप से परोक्ष रूप से ये बाते सब कड़वी हैं, इन सब का महत्व उतना ही रखता हैं जितना कि राजनीति में व्यक्ति का होना। अगर राजनीति किसी एक व्यक्ति विशेष से जुड़ी हुई हैं तब ये सब बातें राजनीति पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभवित होगी और उस पर लागू होने से हम या आप रोक भी नही सकते हैं, हम सशर्त जब रोक सकते हैं जब सब की सोच एक जैसी होगी और ये होना दुनिया मे कतई असम्भव काम हैं। इसलिए सभी व्यक्तियों से पहले खुद को समझना होगा कि राजनीति कोई व्यक्ति विशेष से नही चलती हैं। बल्कि राजनीति एक कर्तव्य हैं, जो सभी को अपना मनना पड़ेगा लेकिन तब तक हमे इन सभी बीमारियों से खुद ही झेलना पड़ेगा।
राजनीति को हम किताबों में पड़ जरूर सकते हैं, लेकिन इसे समझने के लिए पहले इसे महसूस करना पड़ेगा। राजनीति के नाम पर जो जगह जगह ठगी जो चल रही हैं वो हमारी अप्रत्यक्ष गलती हैं, ओर हमे इस स्वीकार करना पड़ेगा। राजनीति के पथ प्रदर्शक बने हुए राजनेता खुद जनता को दोनों हाथों से लपेट रहे हैं और जनता जनारदन को भनक तक नही हैं, इसका सीधा सीधा संबंध इस बात से हैं कि राजनीति को जनता समझ नही पाती हैं और रानीतिज्ञों के हाथों खुद का ही अप्रत्यक्ष बलात्कार का पाप खुद ही कर बैठते हैं, ओर अन्यत्र जाकर फिर राजनीति को बदनाम करते हैं, यहां गलती हम सीधे तौर पर जनता की भी नही होती हैं, संभवतः जनता को पता ही नाइ होता हैं कि भविष्य में उनका शोषण उनके ही प्रतिनिधि करने वाले हैं जो उनको अपने जाल में जाती, धर्म, रंग, छुआछूत के नाम पर भड़का कर अपना वोट पक्का कर लेते हैं और भोली-भाली जनता के समक्ष अपने आप को सरीफ दिखने में मशगूल हो जाते हैं। क्या हम उस प्रतिनिधि को राजा घोषित कर सकते हैं? क्या हम उसको राजनीति के लायक समझ सकते हैं? क्या वो हमारे सर्वेसर्वा हैं अगले कुछ सालों तक, जब तक वापिस चुनाव नही हो जाता? क्या के हमारे देश के सच्चे राजनेता ओर राजनीतिज्ञ हैं? क्या ऐसे लोगो से ही हमारा देश चलना चाहिए? अगर चलना चहिये तो क्या ये हमारे या हमारे आगामी पीढ़ी के लिए सर्वश्रेस्ठ हैं? इन सब प्रश्नों का उत्तर हमारे खुद के पास हैं लेकिन हम इसको जानना ओर समझना खुद से नही चाहते हैं। कुछ हद तक हम ये भी कह सकते हैं कि अगर जनता चतुर ओर चालक होगी तो राजनेताओं को इसमें घाटा होगा तो क्या वो तो लोग हमें समझने नही देते, जिस प्रकार पहले साहूकार लोग किसी और को अपना स्वामी नहीं बनाते थे कि उसी प्रकार अब राजनीति में करवाना चाहते हैं। इन सब जे जवाब आप सभी को खुद से हल करने होंगे और कोई व्यक्ति आपको इसमे मदद नही करेगा। सायद उसको इन प्रश्नों में उसको घाटा हो तो तो वो आपकी मदद न करे तो ये सब आप पर निर्भर करता हैं की क्या सही हैं ओर क्या गलत हैं।
