
गज़ब अमर भावना की, एक निराली सी परिपाटी हैं।
उस अजब निराली परिपाटी की, शौणित हमारी माटि हैं।।
राजस्थान की धरती पर, साँगा वीर प्रताप हुए।
घमासान सियासी धरती पर, नित हरामी जयचंद हुए।।
लोक लाज की रक्षा हेतू, कितने वीर शहीद हुए।
सियासत के पगफेरों में, कितने लोक शरीक हुए।।
अरे कुछ चंद रुपये ले लेते, देश के अमर खजाने से।
पर तुमने तो निकामों, देश बेच दिया, कुछ चंद सिक्के बजाने से।।
राजधरा को शौणित-शोभित, वीरों ने हर बार किया।
चंद रुपयों के खातिर, नीचों ने नतमस्तक हैं हर बार किया।।
राजघराने की इस धरती पर, राज घरों के उजाड़ दिए।
अपना राज बचाने में, न जाने लाखों राज उखाड़ दिए।।
सियासी हथकंडो से, न जाने कितने कांड किये।
उसी कांड के चकर में, न जाने कितने महाकाण्ड किये।।
शौर्य गरिमा के खातिर, एक गरम लहर सी छाई थी।
शूरवीरों के गरम लहुँ से, आजादी गोरों से पायी थी।।
आजादी तो पायी हमने, लड़ाई बरसों की छोड़ गए।
अभिशाप हैं नेहरू- जिन्ना को, रीढ़ हमारी तोड़ गए।।
तुमसे तो अंग्रेज भले, उन्होंने तो गद्दारी की।
देशहित के नाम तले, तुमने तो मक्कारी की।।
उस एक सियासी हत्यारे ने, लाखों खेप उजाड़ दिए।
उसी सियासी मैदानों में, लाखों खेत उजाड़ दिए।।
क्षत्रियों से अधिक वीर कहा, महाऋषियों सा तेज कहा।
ऐसी बलदानी धरती का, दूजा भारत और कहाँ, दूजा भारत और कहाँ।।
