
काश्मीर के मुदों पर चर्चा रोज हजार हुईं!
वो चर्चा एक अभिमानी थी,
वो चर्चा एक लाचारी थी,
वो चर्चा एक मजबूरी थी,
वो चर्चा एक बीमारी थी,
वो चर्चा एक अधूरी थी,
वो चर्चा एक अधूरी हैं।
घाटी के पत्थरबाजों की मनसा थी गद्दारी सी!
कह दिया मीडिया अखबारों ने,
उन आतंकी गद्दारों पर,
क्यों रोज फेंकते पत्थर थे?
उन मुस्तेदी पहरेदारों पर।
वो रोज सिफ़ाई मरते थे,
वो रोज सिफ़ाई मरते हैं।
सियासी ठेकेदारों की वो एक अमानत पत्थर थी!
पाकिस्तान के करतूतों पर,
हैं खड़ा काश्मीर सड़कों पर,
सियार सिंह बने फिरते हैं,
भला वार करे सोये सिंहो पर।
वो पत्थर रोज उठाते थे,
वो पत्थर रोज उठाते हैं।
सियासत के दलों ने यूँ दिल्ली को ललकारा हैं!
नित रोज लगते नारे हों,
की “भारत एक हमारा हैं”,
काश्मीर क्यूँ बेच दिया?
उन दिल्ली के दरबारों ने।
वो दिल्ली को आंख दिखाते थे,
वो दिल्ली को आंख दिखाते हैं।
काश्मीर के टुकड़े कर यूँ भारत को बचायेंगे!
पत्थर के आगे नतमस्तक थे,
तो सेना क्यूँ बनाई थी?
भेज दिया करों वीरों को,
घाटी के पत्थरबाजों संग।
पर हम पत्थर नही उठाते थे,
ना पत्थर कभी उठायेंगे।
काश्मीर हैं, मुल्क हमारा उस माटी का तिलक लगायेंगे!
कोई नीच हरा दे भारत को,
उस तन में उतना खून नहीं,
शांतिवाद से देश बड़ा हैं,
कब तल्क चुप कर जाएंगे।
सर्जिकल कर दिखलाया था,
सर्जिकल कर दिखलायेंगे।
